संदेश

दिसंबर, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

दोहे

दोहे दुखियारे घर घर बसे,कोउ न देखन जाय । देखन उनको जाये जो ,कोटिक आशिष पाय ॥ देख जगत की नीति मैं ,खडी -खडी बौराउँ। हेरफेर की रीति में , कैसे प्रीति निभाउँ ॥ खड़ी बीच बाजार मैं, माँगू सबकी खैर , सब अपनी झोली भरे , छोड़े न हेरफेर॥ नदी किनारे मैं खड़ी , खोजूँ प्रभु का छोर । मीनें तैरें एक सँग , हेरूँ उनकी ओर ।। मेघा संदेशा तुम जा ,अलकापुरी कहना । तुमरे बिना कैसे हो, यक्ष का अब जीना ॥ देख ऊपर चढता , वर्षा ऋतु का बादल । करता है प्रिया दग्ध , यक्ष का अब सीना ॥ रतनगिरि आश्रम में, आवास है अब मेरा । विश्राम प्रमाद वश , मुझे जहर पीना ॥ प्रिया न लगता मन , हाल तेरा जैसा मेरा । खोया तुझको है मैंने ,कामदेव से छीना ॥ राजनीति बाज बैठो, करत गरीब संहार । अापनो वजूद राखो , करत सहज प्रहार॥ राजनीति मधु प्याला, दुष्ट जन करत पान। धर्म अधर्म कोऊ नाहीं, जो पावै झूठी शान॥ बेरोजगारी अनीति से,राजनीति को नहीं काम। शोषण अत्याचार भी है, सम्मानीयों के काम ॥ चूल्हा चक्की सब टूटी ,गरीब माँगे सबकी खैर । देखत झोपड उजडी , राजनीति करे विदेश सैर॥ देख हालात त्रस